बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 124

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

19. मैं तो चली पिया की डागरिया

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मैं जानती हूँ कि आप लोगों की सेवा करना मेरा धर्म है,
आपकी सेवा छोड़कर जाना पाप है,
किन्तु क्या करूँ?
अपने वश की बात नहीं है।
पाप का फल भोग लूँगी,
नरक की पीड़ा सह लूँगी,
किंतु अब चितचोर की विरह-व्यथा नहीं सही जाती।
भगवान् से मैं प्रार्थना करती हूँ कि
मुझे अगले जन्म में आपकी सेवा करने का अवसर मिले।
मेरी प्यारी धौरी!
प्यारे मुन्ना!
तुम लोगों से बिदा हो रही हूँ।
क्या करूँ,
जब गोपाल ही तुमको छोड़ गया,
तो मैं कितना साथ दूँ।
दुःखी मत होना,
सासजी सेवा करेंगी।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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