बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 121

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

19. मैं तो चली पिया की डागरिया

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मुझे देखते ही पहले आदरपूर्वक राजभवन में भेजोगे,
फिर राजकार्य छोड़कर शीघ्र ही मुझसे मिलोगे,
मिलते ही क्षमा माँगोगे,
सजल नेत्रों से मेरी ओर ताकोगे।
तुम्हारे इस व्यवहार पर मैं क्या करूँगी?
तुम्हारे चरणों में गिरने के लिये आगे बढूँगी,
तुम झपटकर अपने बाहुपाश में बाँध लोगे।
आह, उसकी कल्पना ही कितनी मधुर और सुखद है।
चलो, तब सब ठीक है,
मेरे दोनों हाथों में लड्डू हैं।
प्रेम से मिले तो भी ठीक,
तिरस्कार किया तो भी ठीक।
एक बार जी भरकर देखके साथ मिटा लूँगी।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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