बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 120

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

19. मैं तो चली पिया की डागरिया

Prev.png

बरबस ही सही,
निर्लज्जता से ही सही,
एक बार तो भर आँखों तुम्हें देख ही लूँगी,
पीछे चाहे तुम धक्के देकर ही निकलवा देना।
मेरी साध तो पूरी हो जायेगी!
कसक तो मिट जायेगी!
तुम्हारा वह तिरस्कार भी मुझे सुख देने वाला होगा।
और कहीं तुमने प्रेम का निर्वाह किया तो?
नेत्रों में अश्रु भरे हुए प्रेम-पूर्वक मुझसे मिल तो,
आह!
क्या बताऊँ?
किस आनन्द से उपमा दूँ?
उसके समान आनन्द तो मेरी कल्पना में भी नहीं आता।

Next.png

संबंधित लेख

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः