बरबस ही सही,
निर्लज्जता से ही सही,
एक बार तो भर आँखों तुम्हें देख ही लूँगी,
पीछे चाहे तुम धक्के देकर ही निकलवा देना।
मेरी साध तो पूरी हो जायेगी!
कसक तो मिट जायेगी!
तुम्हारा वह तिरस्कार भी मुझे सुख देने वाला होगा।
और कहीं तुमने प्रेम का निर्वाह किया तो?
नेत्रों में अश्रु भरे हुए प्रेम-पूर्वक मुझसे मिल तो,
आह!
क्या बताऊँ?
किस आनन्द से उपमा दूँ?
उसके समान आनन्द तो मेरी कल्पना में भी नहीं आता।