बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 115

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

18. बस, एक झलक

Prev.png

रो-रोकर ये अपनी सुन्दरता भी खो बैठे।
अपनी श्वेतता से हाथ धो बैठे।
देखो कितने लाल हो रहे हैं।
पलकें मोटी हो गयी हैं,
वे स्वच्छ और नुकीली बरौनियाँ
परस्पर गुँथकर सीधी पड़ गयी हैं।
नेत्र पूरे खुलते भी नहीं,
किसके लिये खुलें?
प्यारे कन्हैया!
जब से तुम गये, तब से इनमें काजल नहीं लगाया,
जब मैं काजल की डिब्बी उठाती हूँ,
तब ये बंद हो जाते हैं,
मैं फिर डिब्बी रख देती हूँ।

Next.png

संबंधित लेख

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः