क्या पूछता है,
क्या वे फिर आवेंगे?
आह! यह तो बड़ा बेढब प्रश्न किया तूने,
किंतु, प्रश्न ही भर बेढब है,
उत्तर तो सहज है।
आशा बराबर लगी है कि वे आवेंगे।
जिस दिन आशा टूट जायेगी,
उस दिन सारे कष्टों से छुट्टी मिल जायेगी।
उस रूप-सुधा को फिर पान करने की आशा में ही तो
तड़प रही हूँ।
प्राणप्यारे!
तुम्हारे दर्शन की आशा ही तो
तमाम दुःखों का कारण है।
हाय! यही आशा तो बैरिन हो गयी।
(नेत्र बंद करके मौन हो जाती है।)