बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 111

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

17. यही आशा तो बैरिन हो गयी

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क्या पूछता है,
क्या वे फिर आवेंगे?
आह! यह तो बड़ा बेढब प्रश्न किया तूने,
किंतु, प्रश्न ही भर बेढब है,
उत्तर तो सहज है।
आशा बराबर लगी है कि वे आवेंगे।
जिस दिन आशा टूट जायेगी,
उस दिन सारे कष्टों से छुट्टी मिल जायेगी।
उस रूप-सुधा को फिर पान करने की आशा में ही तो
तड़प रही हूँ।
प्राणप्यारे!
तुम्हारे दर्शन की आशा ही तो
तमाम दुःखों का कारण है।
हाय! यही आशा तो बैरिन हो गयी।
(नेत्र बंद करके मौन हो जाती है।)

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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