बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 108

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

17. यही आशा तो बैरिन हो गयी

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अच्छा जाने दो, तुम्हारी करनी तुम्हारे साथ,
मेरी करनी मेरे साथ।
तुम भले ही सुधि न लो,
चाहे मिलने पर भी ठुकरा दो,
देखकर भी दूसरी ओर मुख फेर लो,
तो इससे मेरे प्रेम में कमी थोड़े आयेगी!
यह तो अपने-अपने हृदय की विशेषता है,
किसी का कठोर होता है, किसी का कोमल।
तुम्हारा हृदय वैसा है, मेरा ऐसा।
इसमें कुछ कहने की क्या बात है?
किंतु इतना फिर भी कहूँगी,
जब तुम्हारा हृदय ऐसा था
तब क्यों हम भोली-भोली ब्रजांगनाओं के साथ
तुमने प्रेम करके हमारा चित्त चुरा लिया?

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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