बाल्हा मैं बैरागिण हूँगी हो -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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आत्मं समर्पण


राग जोगिया




बाल्हा मैं बैरागिण हूँगी हो ।
जीं जीं मेष म्हाँरो साहिब रीझे, सोइ सोइ भेष घरूंगी, हो ।। टेक ।।
सील संतोष धरूं घट भीतर, समता पकड़ रहूँगी, हो ।
जाको नाम निरंजण कहिये, ताको ध्यान धरूंगी, हो ।
गुरु ज्ञान रँगूँ तन कपड़ा, मन मुद्रा पेरूँगी, हो ।
प्रेम प्रीत सूँ हरिगुण गाऊँ, चरणन लिपट रहूँगी, हो ।
या तन की मैं करूँ कींगरी, रसना राम रटूँगी, हो ।
मीराँ कहे प्रभु गिरधर नागर, साधाँ सँग रहूँगी, हो ।।152।।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बाल्हा = बल्लभ, प्रियतम। जीं जीं = जिन जिन। निरंजण = निरंजन परमात्मा का नाम। घट = शरीर। समता = सब के साथ बराबरी का भाव। पेरूँगी = पहनूँगी। कींगरी = किंगिरी, छोटी सांरगी जिसे बजाकर कुछ जोगी भी माँगते हैं ( देखो - ‘तजा राज राजा भा योगी। औ किंगिरी कर गये वियोगी’- जायसी)।
    विशेष- प्रियतम के साथ तादात्म्य ग्रहण करने के निमित्त मीराँबाई ने इस पद में बैरागिन वा जोगिन के भेष धारण के रूपक से सहायता ली है।

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