बार नहिं करों बारन सहित फटकिहौं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गुंडमलार


बार नहिं करो बारन सहित फटकिहौं, बावरे बात कहि मुख सँभारौ।
बादि मरि जाइगौ, बार नहि छाँड़ि दै, बदत बलराम तोहिं बार बारौ।।
बात मेरी मानि गर्व बोलै कहा, काल किन देखि, इतरात का रे।
बाम कर गहिं मुड डारिहौ अमरपुर, हाँक दै तुरत गज कौ हँकारे।।
बाज सौ टूटि गजराज हाँकत परयौ, मनौ गिरि चरन धरि लपकि लीन्हौ।
बार बाँधे बीर चहुँधा देखही बज्र सम थाप बल कुंभ दीन्हौ।।
कूक पारयौ लपकि धीज गज डारयौ मद, गड मधि रध्र झरिवौ सुखान्यौ।
क्रोध गजपाल कै ठठकि हाथी रह्यौ, देत अकुस मसकि कह सकान्यौ।।
बहुरि तातौ कियौ, डारि तिन पै दियौ, आइ लपटे सुतहु नद केरे।
'सूर' प्रभु स्याम बलराम दोउ दुहूँघा, बीच करि नाग इत उतहिं टेरे।।3054।।

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