बारुनी बलराम पियारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग



बारुनी बलराम पियारी ।
गौतमसुता भगीरथ धीवर, सबहिनि तै सुंदर सुकुमारी ।।
ग्रीवा बाहु गलारत, गाजत, सुख सजनी सतिभाइ सँवारी ।।
संकर्षन कै सदा सुहागिनि, अति अनुराग भाग बहु बारी ।।
बसुधातल जु बाम गिरि राजत, भ्राजत सकल लोक सुखकारी ।
प्रथम समागम आनँद आगम, दूलह वर दुलहिनी दुलारी ।।
रति रस रीति प्रीति परगट करि, राम काम पूरन प्रतिपारी ।
‘सूर’ सुभाग उदित गोपिनि के, हरि मूरति भेटे हलधारी ।। 4202 ।।

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