वायस गहगहात सुनि सुदरि, वानी विमल पूर्व दिसि बोली।
आजु मिलावा होइ स्याम कौ, तू सुनि सखी राधिका भोली।।
कुच भुज नैन अधर फरकत हैं, विनहिं बात अचल ध्वज डोली।
सोच निवारि करौ मन आनँद, मानौ भाग दसा विधि खोली।।
सुनत बात सजनी के मुख की, पुलकित प्रेम तरकि गई चोली।
‘सूरदास’ अभिलाष नदसुत, हरषी सुभग नारि अनमोली।। 4276।।