बाजति नंद-अवास बधाई।
बैठे खेलत द्वार आपनैं, सात बरस के कुंवर कन्हाई।।
बैठे नंद सहित वृषभानुहि, और गोप बैठे सब आई।
थापैं देत घरनि के द्वारैं, गावति मंगल नारि बधाई।
पूजा करत इंद्र की जानी, आए स्यांम तहौ अतुराई।
बार-बार हरि बूभत नंदहिं, कौन देव की करत पुजाई।
इंद्र बड़े कुल-देव हमारे, उनतैं सब यह होति बड़ाई।
सूर स्याम तुम्हरे हित कारन, यह पूजा हम करत सदाई ।।818।।