बाँस-बंस-बंसी-बस सबै-जगत-स्वामी।
जाकैं बस सुर नर मुनि, ब्रह्मादिक गुन गुनि, गुनि बासर निसि कथत निगम, नेति नेति बानी।।
जाकी महिमा अपार, सिव न लहत वार-पार, करता-संसार-सार ब्रह्म रूप ये हैं।
सूर नंद-सुवन स्याम, जे कहियतऽनंत नाम, अतिहीं आधीन बस्य, मुरली के ते हैं।।1244।।