बहुरि हरि आवहिंगे किहि काम -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


बहुरि हरि आवहिंगे किहि काम।
रिपु बसंत अरु ग्रीषम बीते, बादर आए स्याम।।
छिन मंदिर छिन द्वार ठाढ़ौ, यौ सूखति है धाम।
तारे गनत गगन के सजनी, बीतै चारौ जाम।।
औरौ कथा सबै बिसराई, लेत तुम्हारौ नाम।
‘सूर’ स्याम ता दिन तै बिछुरे, अस्थि रहै कै चाम।। 3309।।

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