प्‍यारे दरसण दीज्‍यो आय -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरह निवेदन

राग आसावरी


प्‍यारे दरसण दीज्‍यो आय, तुम बिन रह्यो न जाय ।। टेक ।।
जल बिन कँवलचंद बिन रजनी, ऐसे तुम देख्‍याँ बिन सजनी ।
याकुल व्‍याकुल फिरूँ रैण दिन, बिरह कलेजो खाय ।
दिवस न भूख नींद नहिं रैणा, मुखसूँ कथत न आवै बैणा ।
कहा कहूँ कुछ कहत न आवै, मिल कर तपत बुझाय ।
क्‍यूँ तरसावो अंतरजामी, आय मिलो कि‍रपा कर स्‍वामी ।
मीराँ दासी जनम जनम की, परी तुम्‍हारे पाय ।।101।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. याकुल व्याकुल = अत्यंत बेचैन। बिरह कलेजो खाय = बिरह मर्मान्तक पीड़ा पहुँचा रहा है। वैणा = बचन। परी...पाय तुम्हारे = चरणों पड़ती हूँ।

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