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श्रीप्रेम सुधा सागर
दशम स्कन्ध
(उत्तरार्ध)
तिरसठवाँ अध्याय
श्रीकृष्ण से इस प्रकार अभयदान प्राप्त करके प्राप्त करके बाणासुर ने उनके पास आकर धरती में माथा टेका, प्रणाम किया और अनिरुद्धजी को अपनी पुत्री उषा के साथ रथ पर बैठाकर भगवान के पास ले आया। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने महादेवीजी की सम्मति से वस्त्रालंकार विभूषित उषा और अनिरुद्धजी को एक अक्षौहिणी सेना के साथ आगे करके द्वारका के लिये प्रस्थान किया। इधर द्वारका में भगवान श्रीकृष्ण आदि के शुभागमन का समाचार सुनकर झंडियों और तोरणों से नगर का कोना-कोना सजा दिया गया। बड़ी-बड़ी सड़कों और चौराहों को चन्दन-मिश्रित जल से सींच दिया गया। नगर नागरिकों, बन्धु-बान्धवों और ब्राह्मणों ने आगे आकर खूब धूमधाम से भगवान का स्वागत किया। उस समय शंख, नगारों और ढोलों की तुमुल ध्वनि हो रही थी। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी राजधानी में प्रवेश किया। परीक्षित्! जो पुरुष श्रीशंकर जी के साथ भगवान श्रीकृष्ण का युद्ध और उनकी विजय की कथा का प्रातःकाल उठकर स्मरण करता है, उसकी पराजय नहीं होती । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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