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श्रीप्रेम सुधा सागर
दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
पाँचवाँ अध्याय
यशोदा जी के पुत्र हुआ है, यह सुनकर गोपियों को भी बड़ा आनन्द हुआ। उन्होंने सुन्दर-सुन्दर वस्त्र, आभूषण और अंजन आदि से अपना श्रृंगार किया। गोपियों के मुखकमल बड़े ही सुन्दर जान पड़ते थे। उन पर लगी हुई कुमकुम ऐसी लगती मानो कमल की केसर हो। उनके नितम्ब बड़े-बड़े थे। वे भेंट की सामग्री ले-लेकर जल्दी-जल्दी यशोदा जी के पास चलीं। उस समय उनके पयोधर हिल रहे थे। गोपियों के कानों में चमकती हुई मणियों के कुण्डल झिलमिला रहे थे। गले में सोने के हार[1] जगमगा रहे थे। वे बड़े सुन्दर-सुन्दर रंग-बिरंगे वस्त्र पहने हुए थीं। मार्ग में उनकी चोटियों में गुँथे हुए फूल बरसते जा रहे थे। हाथों में जड़ाऊ कंगन अलग ही चमक रहे थे। उनके कानों के कुण्डल, पयोधर और हार हिलते जाते थे। इस प्रकार नन्दबाबा के घर जाते समय उनकी शोभा बड़ी अनूठी जान पड़ती थी। नन्दबाबा के घर जाकर वे नवजात शिशु को आशीर्वाद देतीं ‘यह चिरजीवी हो, भगवन! इसकी रक्षा करो।’ और लोगों पर हल्दी-तेल से मिला हुआ पानी छिड़क देतीं तथा ऊँचे स्वर से मंगलगान करतीं थीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हैकल या हुमेल
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