प्रेम सुधा सागर पृ. 132

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
षोडश अध्याय

Prev.png

नृत्य-गान आदि समस्त कलाओं के आदिप्रवर्तक भगवान श्रीकृष्ण उसके सिरों पर कलापूर्ण नृत्य करने लगे। भगवान के प्यारे भक्त गन्धर्व, सिद्ध, देवता, चारण और देवांगनाओं ने जब देखा कि भगवान नृत्य करना चाहते हैं, तब वे बड़े प्रेम से मृदंग, ढोल, नगारे आदि बाजे बजाते हुए, सुन्दर-सुन्दर गीत गाते हुए, पुष्पों की वर्षा करते हुए और अपने को निछावर करते हुए भेट ले-लेकर उसी समय भगवान के पास आ पहुँचे।

परीक्षित! कालिय नाग के एक सौ एक सिर थे। वह अपने जिस सिर को नहीं झुकता था, उसी को प्रचण्ड दण्डधारी भगवान अपने पैरों कि चोट से कुचल डालते। उससे कालिय नाग की जीवन शक्ति क्षीण हो चली, वह मुँह और नथनों से खून उगलने लगा। अन्त में चक्कर काटते-काटते वह बेहोश हो गया।

तनिक भी चेत होता तो वह अपनी आँखों से विष उगलने लगता और क्रोध के मारे जोर-जोर से फुफकारें मारने लगता। इस प्रकार वह अपने सिरों में से जिस सिर का ऊपर उठाता, उसी को नाचते हुए भगवान श्रीकृष्ण अपने चरणों की ठोक से झुकाकर रौंद डालते। उस समय पुराण-पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण के चरणों पर जो खून की बूँदे पड़ती थीं, उनसे ऐसा मालूम होता, मानो रक्त-पुष्पों से उनकी पूजा की जा रही हो।

परीक्षित! भगवान के इस अद्भुत ताण्डव-नृत्य से कालिय के फण रूप छत्ते छिन्न-भिन्न हो गये। उसका एक-एक अंग चूर-चूर हो गया और मुँह से खून की उलटी होने लगी। अब उसे सारे जगत के आदि शिक्षक पुराण पुरुष भगवान नारायण की स्मृति हुई। वह मन-ही-मन भगवान की शरण में गया। भगवान श्रीकृष्ण के उदर में सम्पूर्ण विश्व है। इसलिये उनके भारी बोझ से कालिय नाग के शरीर की एक-एक गाँठ ढीली पड़ गयी। उनकी एडियों की चोट से उसके छत्र के समान फण छिन्न-भिन्न हो गये।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः