प्रेम सुधा सागर अध्याय 9 श्लोक 12 का विस्तृत संदर्भ

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
आठवाँ अध्याय

Prev.png

‘अरी मैया! मोहि मत मार।’ माता ने कहा - ‘यदि तुझे पिटने का इतना डर था तो मटका क्यों फोड़ा?’ श्रीकृष्ण - ‘अरी मैया! मैं अब ऐसा कभी नहीं करुँगा। तू अपने हाथ से छड़ी डाल दे।’

श्रीकृष्ण का भोलापन देखकर मैया का हृदय भर आया, वात्सल्य-स्नेह के समुद्र में ज्वार आ गया। वे सोचने लगीं - लाला अत्यन्त डर गया है। कहीं छोड़ने पर यह भागकर वन में चला गया तो कहाँ-कहाँ भटकता फिरेगा, भूखा-प्यासा रहेगा। इसलिये थोड़ी देर तक बाँधकर रख लूँ। दूध-माखन तैयार होने पर मना लूँगी। यही सोच-विचाकर माता ने बाँधने का निश्चय किया। बाँधने में वात्सल्य ही हेतु था।

भगवान के ऐश्वर्य का अज्ञान दो प्रकार का होता है, एक तो साधारण प्राकृत जीवों को और दूसरा भगवान के नित्य सिद्ध प्रेमी परिकर को। यशोदा मैया आदि भगवान की स्वरूपभूता चिन्मयी लीला के अप्राकृत नित्य-सिद्ध परिकर हैं। भगवान के प्रति वात्सल्य भाव, शिशु-प्रेम की गाढ़ता के कारण ही उनका ऐश्वर्य-ज्ञान अभिभूत हो जाता है; अन्यथा उनमें अज्ञान की संभावना ही नहीं है। इनकी स्थिति तुरीयावस्था अथवा समाधि का भी अतिक्रमण करके सहज प्रेम में रहती हैं। वहाँ प्राकृत अज्ञान, मोह, रजोगुण और तमोगुण की तो बात ही क्या, प्राकृत सत्त्व की भी गति नहीं है। इसलिये इनका अज्ञान भी भगवान की लीला की सिद्धि के लिये उनकी लीला शक्ति का ही एक चमत्कार विशेष है।

तभी तक हृदय में जड़ता रहती है, जब तक चेतन का स्फुरण नहीं होता। श्रीकृष्ण के हाथ में आ जाने पर यशोदा माता ने बाँस की छड़ी फेंक दी - यह सर्वथा स्वाभाविक है।

मेरी तृप्ति का प्रयत्न छोड़कर छोटी-मोटी वस्तु पर दृष्टि डालना केवल अर्थ-हानि का ही हेतु नहीं है, मुझे भी आँखों से ओझल कर देता है। परन्तु सब कुछ छोड़कर मेरे पीछे दौड़ना मेरी प्राप्ति का हेतु है। क्या मैया के चरित से इस बात की शिक्षा नहीं मिलती?

मुझे योगियों की भी बुद्धि नहीं पकड़ सकती, परन्तु जो सब ओर से मुँह मोड़कर मेरी ओर दौड़ता है, मैं उसकी मुट्ठी में आ जाता हूँ। यही सोचकर भगवान यशोदा के हाथों पकड़े गये।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः