प्रेम सत्संग सुधा माला पृ. 90

प्रेम सत्संग सुधा माला

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70- यह सिद्धान्ततः ठीक है कि महापुरुषों को साक्षात् भगवान् मानकर उनके चरणों में न्योछावर होने से भगवत् प्रेम की प्राप्ति बड़ी शीघ्रता से होती है। पर किसी मनुष्य-विशेष के प्रति प्रथम तो भगवद्बुद्धि होना कठिन है; हुई भी तो वह आगे चलकर हट सकती है और इस प्रकार अपराध बनने से उसकी उन्नति रुक सकती है; और कहीं वह आदमी, जिसमें भगवद्बुद्धि की गयी, भगवत्प्राप्त न हो (अधिकांश में ऐसा ही होता है, भगवत्प्राप्त महात्मा तो बिरले ही होते हैं), साधक मात्र है तो उससे कोई खास लाभ नहीं होता और यदि दम्भी हो, ऊपर से बना-बना हुआ प्रेमी हो, तब तो निश्चय ही साधक के लिये पश्चात्ताप होने के लिये अवकाश है। इसलिये सर्वोत्तम, सबसे श्रेष्ठ निर्भय मार्ग यह है कि भगवान् के चरणों में जीवन को समर्पित करके उनका पवित्र मधुर स्मरण, उनका प्रेममय भजन तथा सत्संग में रहकर जीवन बिताते हुए समस्त विश्व को ही अपने इष्ट का रूप समझकर यथा योग्य सबकी सेवा की जाय। यही आत्मसमर्पण की तैयारी है। फिर पूर्ण आत्मसमर्पण तो भगवान् कराते हैं।

एक और आवश्यक प्रार्थना यह है कि जीवन में किसी को तत्व-निर्णय के झगड़े में नहीं पड़ना चाहिये। ऐसा करने वालों का रास्ता प्रायः बंद-सा हो जाता है; क्योंकि क्योंकि वास्तविक तत्व तो अनिर्वचनीय है। श्रीकृष्ण, श्रीराधा, श्रीगोपीजन, उनका प्रेम और उनकी परम पवित्र लीला मन-वाणी के विषय नहीं हैं। जो भी वाणी से कहा जाता है, शास्त्रों में सुनने को मिलता है, वह तो शाखा-चन्द्रन्याय की भाँति संकेत है। भक्त को चाहिये कि वह सिद्धान्त-निर्णय के फेर में बिलकुल न पड़कर सरल श्रद्धा से आत्मसमर्पण की तैयारी- श्रीकृष्ण, श्रीराधारानी के चरणों में न्योछावर हो जाने की तैयारी करे। वह केवल तैयारी ही कर सकता है; असली आत्मसमर्पण हो होगा तब, जब श्रीकृष्ण स्वयं इस आत्मसमर्पण को स्वीकार करेंगे। उसके पहले प्राणों की समस्त व्याकुलता लेकर तैयारी करनी होगी। कोई ज्ञानी कहे कि ब्रम्ह-प्राप्ति ही सबसे ऊँची स्थिति है तो उसमें भगवद्भाव करके, प्रभु हमारी परीक्षा ले रहे हैं- यों समझकर उसे प्रणाम करके उपरत हो जाना चाहिये, भूलकर भी कभी वाद-विवाद या बहस नहीं करनी चाहिये। करने चाहिये केवल दो काम- जीभ से अखण्ड नामोच्चारण एवं मन से अखण्ड श्रीकृष्ण-लीलाओं का चिन्तन! इसमें जो सहायक हों, उन्हें जोड़ते चले जाना चाहिये। बाधक हों, उन्हें तुरंत फेंकते जाना चाहिये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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