प्रेम सत्संग सुधा माला पृ. 81

प्रेम सत्संग सुधा माला

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दोनों ने देखा एक अत्यन्त सुन्दर बारह वर्ष की बालिका आयी है और पूछ रही है- ‘क्यों, तुम लोगों ने भर पेट भोजन तो किया? हमारे अतिथि हो ?’ उन लोगों ने स्वप्न में ही कहा- ‘खूब छककर खाया।’ बालिका बोली- ‘पर आज प्रसाद में खूब बढ़िया पान था, पुजारी वह देना भूल गया। वही पान लेकर मैं आयी हूँ।’ यह कहकर उसने दोनों के पास दो-दो खिल्लियाँ पान की रख दीं। उसी समय दोनों की नींद खुल गयी। उठकर देखा तो सिरहाने दो-दो बीड़े पान के रखे हुए हैं। दोनों रोने लगे, प्रेम से व्याकुल हो गये। पान का बीड़ा मुँह में रखकर प्रेम में अधीर हो गये। दोनों ने अपना स्वप्न एक-दूसरे को सुनाया- एक ही समय में दोनों को एक ही स्वप्न हुआ था।

यह सच्ची घटना है और जिनको ऐसा अनुभव हुआ है, वे शायद जीवित हैं। बात इतनी ही है कि श्रीराधारानी, श्रीकृष्ण केवल विश्वास देखते हैं, फिर जैसे भर पेट भोजन देकर उनको अतिथि के रूप में स्वीकार कर लिया, वैसे ही सच्चे विश्वास के साथ उनका दर्शन चाहने वाले, उनकी लीला को देखकर कृतार्थ होने की इच्छा रखने वाले को वे अतिथि बनाकर उसका वैसा ही अतिथि-सत्कार कर सकते हैं। उनके लिये सभी समान हैं, किसी के प्रति भेदभाव नहीं है। अतः आप यदि अनन्य मन से आतुर होकर श्रीकृष्ण से, श्रीराधारानी से चाहें कि बस, आपका निरन्तर चिन्तन हो, निरन्तर आपकी लीला सुनने को मिले, तो सच मानिये, देर का काम नहीं है। अवश्य इस प्रार्थना को वे सुनेंगे। पर प्रार्थना सच्ची हो तब। जब तक आपकी प्रार्थना सच्ची न हो, तब तक झूठे ही मन से बार-बार कहते रहिये। झूठी प्रार्थना को भी वे कृपा करके समय पर सच्ची बना देते हैं।

आपकी यह चाह बड़ी उत्तम है कि निरन्तर श्रीकृष्ण का स्मरण बना रहे और लीला सुनने को मिले। यह बहुत ही उत्तम चाह है। बस, चाहते चले जाइये, झूठी-सच्ची जैसी भी चाह हो- चाहते ही चले जाइये। चाह बनी रहेगी तो वह कभी सच्ची भी हो जायगी और किसी-न-किसी दिन पूर्ण कृपा का प्रकाश होगा ही।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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