प्रेम सत्संग सुधा माला
अब भला, ऐसे-ऐसे अनन्त प्रधानमन्त्री ही नहीं, अनन्त ब्रम्हाण्ड जिसके इशारे से एक क्षण में पलक मारते-मारते बन जाते हैं और दूसरे क्षण नष्ट हो जाते हैं, वह अखिल ब्रम्हाण्डपति स्वयं जिसके सामने आकर अत्यन्त प्रेम से बातें करें, उनके साथ तरह-तरह की लीला करें तो ऐसे पुरुष से बढ़कर जगत् में और कौन है? मान लें कोई महापुरुष है, वह एकान्त कमरे में बैठा भगवान् से बातें कर रहा है, उसी समय आप आये, बाहर से पुकारा और पुकारते ही वह महापुरुष आपसे बड़े प्रेम से कह- आओ, पधारो। अब यदि आप रत्ती भर भी इस बात का माहत्व जानते तो फिर ऐसा अनुभव होता कि जगत् में हमसे बढ़कर भाग्यवान् कोई नहीं है। अशान्ति की तो छाया भी आपको नहीं छू सकती और मन उस अतुलनीय आनन्द से निरन्तर इस प्रकार भरा रहता है कि जगत् आपको देखकर दंग रह जाता। अरे, जिन आँखों से उस महापुरुष ने अभी-अभी भगवान् को देखा है, अभी-अभी जिस शरीर को भगवान् ने स्पर्श किया है, उन्हीं आँखों से वह महापुरुष आपको देख रहा है, उसी शरीर से आपको स्पर्श कर रहा है; सच मानिये- यदि किसी दिन भगवान् की अपार कृपा से भगवान् की महत्ता पर विश्वास कीजियेगा, उसी दिन बस, महापुरुष के मिलने का क्या आनन्द होता है- यह समझ सकियेगा। मन बिलकुल विषयों से कूट-कूटकर भरा है। हम लोगों का मन एकदम गंदा है, इसीलिये महापुरुष के दर्शन का हमें आनन्द नहीं मिलता। समझना-समझाना कठिन है; पर वस्तुतः महापुरुष के संग का आनन्द इतना दिव्य, इतना विलक्षण, इतना असीम है कि बस, आनन्द की कहीं भी, किसी भी सुख से तुलना हो ही नहीं सकती। वह आनन्द क्षण-क्षण बढ़ता ही जाता है, कभी समाप्त नहीं होता। हाथ जोड़कर, दीन होकर रोते हुए हम लोग प्रार्थना करें- ‘प्रभो! अत्यन्त पामर, दीन, हीन, मलिन, विषयों के कीट हम लोगों पर अपनी कृपा प्रकाशित करो। नाथ! तुम्हारे जन संतों के प्रति निःस्वार्थ प्रेम, केवल प्रेम के लिये प्रेम उत्पन्न कर दो।’ प्रतिदिन प्रार्थना कीजिये। प्रार्थना से बड़ा काम होता है। सच मानिये- ऐसी कोई वस्तु नहीं है जिसे भगवान् न दे सकें। ऐसी कोई प्रार्थना नहीं, जिसे भगवान् पूरी न कर सकें। वे असम्भव को सम्भव एक क्षण में सबके लिये बिना पक्षपात के कर सकते हैं। पर हम लोगों का उन पर नहीं, यही दुर्भाग्य है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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