प्रेम सत्संग सुधा माला पृ. 6

प्रेम सत्संग सुधा माला

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और भी युक्तियाँ हैं— जैसे भागवत का पाठ करना हो। अब प्रत्येक श्लोक पर जब एक बार प्रिया-प्रियतम की छबि का चित्र बँध जायगा, तब दूसरा श्लोक पढेंगे। इस प्रकार यदि बारह अध्याय पाठ का नियम हो तो तीन घंटे ध्यान हो जायगा। अठारह अध्याय गीता-पाठ का नियम हो तो तीन घंटे बीत जायँगे। पर होगा लगन से करने पर ही।

7- लगन के लिये, तत्परता के लिये एक युक्ति है। वह यह है कि नींद खुलते ही ह्रदय से श्रीप्रिया-प्रियतम से निवेदन करें कि अब जीवन तुम्हारे हाथ में है और फिर एक काम करें— एक रूमाल बराबर पास रखें, उसमें गाँठ बाँध दें। गाँठदेते समय यह पद गाते रहें-

नंदलाल सौं मेरो मन मान्यौ, कहा करैगो कोय री ।
हौं तो चरन-कमल लपटानी, होनी होय सो होय री ॥
गृहपति माता-पिता मोहि त्रासत, हँसत बटाऊ लोग री ।
अब तो जिय ऐसी बनि आई, बिधनारच्यौ है संजोग री ॥
जो मेरौ यह लोक जायगौ, अरु परलोक नसाय री ।
नंदनंदन कौं तऊ न छाडौं, मिलूँगी निसान बजाय री ॥
यह तनु फिर बहुरौ नहिं पैये बल्लभ बेष मुरार री ।
परमानंद स्वामी के ऊपर सरबस डारौं वार री ॥

-यह पढ़कर गाँठ बाँध लें और जहाँ जायँ, जहाँ बैठें, रूमाल को सामने रखे रहें तथा बार-बार-मन-ही-मन निश्चय दृढ़ करते रहें हमें यही करना है। चाहे सारा संसार जल जाय, नष्ट हो जाय; पर हमें यह एक ही काम करना है। दिनभर वह गाँठ सामने रखें; प्रातःकाल फिर उठकर उसे खोलें, खोलकर फिर पद गाते हुए बाँध दें। इससे बड़ी सहायता मिलती है। किसी को पता भी नहीं चलता कि गाँठ किसलिये है। रूमाल है, किसी काम के लिये गाँठ दी हुई होगी अथवा कोई चीज बाँधी हुई होगी— लोग यही समझेंगे। पर वह सामने हाथ में सदा पड़ा रहे। जहाँ गये, हाथ में लेकर बैठे रहे। इससे प्रियतम के साथ आप घुलमिल जायँगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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