प्रेम सत्संग सुधा माला पृ. 31

प्रेम सत्संग सुधा माला

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विचार भी नहीं रहा थाकि‘यह ठीक कहता है या झूठ। ऐसा इसीलिये था कि व्याकुलता थी।’ उसी प्रकार जिस दिन आप सच्चे मन से चाहने लगेंगे, व्याकुल हो जायँगे कि हमारी साधना की ऐसी स्थिति एक घंटा ही रहकर क्यों छूट जाती है, क्यों नहीं निरन्तर बनी रहती है, उसी दिन, उसी क्षण भगवान् सुन लेंगे।अभी आपको यह सहन हो रहा है कि स्मरण छूट गया तो क्या हुआ। दिन भर मौज से रहे, भोजन किया साँझ को यहाँ आ गये, बातें कर रहे हैं। पर जब व्याकुलता होगी तब पागल की-सी अवस्था होकर स्मरण की स्थिति छूटते ही उसी क्षण, वहीँ पर लाज-शरम छोड़कर आप सोने लगियेगा और जब तक वह पुनः स्थिति नहीं हो जायगी, तब तक आपका रोना बंद नहीं होगा।

जो हो, ऐसी सच्ची व्याकुलता का उपाय यही है जो आप कर रहे हैं। निरन्तर अपनी जान में यही चेष्टा रखें कि नाम-लीला-गुण-रूप सुनें, पढ़ें, कहें, स्मरण रखें। करते-करते जैसे-जैसे अन्तःकरण पवित्र होगा, वैसे-वैसे, व्याकुलता उत्पन्न होने की, सच्ची लालसा उत्पन्न होने की भूमि तैयार होती जायगी। जिस दिन पूर्ण-रूप से वह भूमि तैयार हो गयी कि कोई सच्चा संत या स्वयं भगवान् उसमें प्रेम का बीज बो देंगे।फिर वह उगेगा, बढ़ेगा, फूलेगा, फलेगा और निरन्तर फूलता-फलता ही रहेगा, उसका कभी फूलना-फलना बंद नहीं होगा।

28- इस कलम में भगवान् हैं और जहाँ भगवान् हैं, वहीँ आज तक जितनी लीला हुई है, हो रही है, होगी, सब-की-सब मौजूद है। आप जिस लीला को देखना चाहें, जिस रूप को देखना चाहें, उसी रूप में, उस लीला के साथ इसी कलम से भगवान् प्रकट हो सकते हैं। यह बात नहीं है कि भगवान् के यहाँ भूतकाल, वर्तमानकाल, भविष्यकाल हो। वहाँ तो सब वर्तमानकाल ही है। अर्थात् जैसे पाँच हजार वर्ष पहले वृन्दावन में लीला हुई थी तो इसका यह मतलब नहीं कि वह लीला तो भूतकाल की है। इसका अर्थ यह है कि आज से पाँच हजार वर्ष पहले वृन्दावन की लीला वाला फिल्म लोगों के सामने आया था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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