प्रेम सत्संग सुधा माला पृ. 25

प्रेम सत्संग सुधा माला

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26— आप सात बातों के लिये प्राणों की बाजी लगाकर चेष्टा कीजिये। प्रेम उत्पन्न होने के पहले ये सात बातें अवश्य हो जाती हैं, तब प्रेम प्रकट होता है। नहीं तो आप हो या कोई हो, रास्ता तय करना बड़ा कठिन है।

प्रेम न बाड़ी नीपजै प्रेम न हाट बिकाय ।
राजा परजा जेहि रूचै सीस देइ लै जाय ॥

— यह बिलकुल सत्य है। बहुत बात कर लेंगे, लीला भी सुन लेंगे, लाभ भी थोड़ा होगा ही, पर इन सात के आये बिना वास्तविक प्रेम प्रकट ही नहीं होता। यह ठीक है कि पूर्ण रूप से ये सात बातें तो तभी होती हैं, जब भगवान् का साक्षात्कार हो जाता है; पर उसके पहले साधक को चाहिये कि वह इनको अपने अंदर पूरी-पूरी उतारने के लिये सम्पूर्ण प्रयत्न करे। वे बातें ये हैं—

1) शान्ति रखना— इसके लिये शास्त्र में दृष्टान्त आता है कि राजा परीक्षित् बिना अन्न-जल के सात दिन कथा सुनते रहे, उनमें शान्ति इतनी थी कि अन्न-जल उन्हें याद ही नहीं आता था।

2) भगवान्के भजन के सिवा और किसी काम में समय बिलकुल नहीं लगाना।

3) संसार के समस्त भोगों से ऐसा वैराग्य हो जाय कि ये विष्ठा-से दीखने लग जायँ। जिस प्रकार विष्ठा को देखकर घृणा होने लगती है; मुँह-नाक बंद करके हम चलते हैं कि कहीं दुर्गन्ध न आ जाय, ठीक उसी प्रकार समस्त भोगों से आन्तरिक घृणा हो जाय।

4) मन में अपने अंदर मान का बिलकुल भाव ही न रहे। शास्त्र में दृष्टान्त आता है कि राजा भरत जब प्रेम के लिये व्याकुल हुए तब वे इतने अधिक मानशून्य हो गये थे कि राज्य करते समय जिन-जिन राजाओं पर विजय प्राप्त की थी, जिन-जिन से उनकी शत्रुता थी, उन्हीं के घर में जाते थे और उनकी दी हुई रोटी के टुकड़े माँग-माँगकर पेट भरते हुए भजन करते थे— और अपने शत्रु को ही नहीं, चाण्डाल तक को प्रणाम करते थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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