प्रेम सत्संग सुधा माला पृ. 150

प्रेम सत्संग सुधा माला

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आखिर नाव किनारे लग ही गयी। यात्री भी उतरे। मल्लाह श्रद्धालु था। किसी भी संत-महात्मा से उसने उतराई ली ही नहीं थी। ग़रीबों को वह यों ही पार कर देता था। याचना तक उसने नहीं नहीं की थी किसी से भी उतराई की उसने अपने जीवन भर। लोग जो देते थे, उसी से उसका जीवन चलता था। अस्तु! उसके मन में आया संत पागल होंगे, किंतु नाव तो पार लगी है इनकी उपस्थिति के कारण। उसने डाँड़ फेंककर संत के चरण पकड़ लिये और पूछ बैठा-‘महाराज! आपने ऐसा क्यों किया? पहले तो पानी भीतर डाल रहे थे, फिर बाहर डालने लगे।’ संत हँसे और बोले-“देखो, मेरी नकल तो मत करना और मैं जो कह रहा हूँ, उसे समझने कीचेष्टा करना। तुमने कहा-‘नाव डूबने जा रही है।’ तुम्हारी बात सुनकर मेरे मन में आया कि ‘प्रभु की इच्छा है कि नाव डूब जाय, फिर मेरे लिये क्या कर्तव्य है? नाव डूबे या बचे, इससे मेरे लिये कुछ बनता-बिगड़ता नहीं, किंतु मेरा तो कर्तव्य यही है कि उनके- प्रभु के परम मंगलमय विधान में मेरे द्वारा सहयोग का दान हो जाय। बस, मैंनेकमण्डलु उठाया और पानी डालने लगा- दूसरे शब्दों में मेरा प्रयास नाव को डुबाने की दिशा में रहा, या हुआ, या दीखा औरफिर जैसे ही तुमने यह बात कही कि ‘नाव के बचने की आशा है’ बस, उसी क्षण मेरा प्रयास नाव को बचाने की दिशा में चल पड़ा- यह जानकर कि ‘प्रभु नाव को बचाना चाह रहे हैं।’ बस, प्रभु की मंगलमयी इच्छा में अपनी इच्छा मिला दिया करो। इसका यह अर्थ तुम मत मान लेना कि कोई मरता हुआ दीखे तो किसी वैद्य के घर से लाकर उसे जहर खिला दो। इसका अर्थ इतना ही है कि ‘भगवान् की रूचि तुम्हें जैसी प्रतीत हो, उसका तुम आन्तरिक उल्लास से स्वागत करो।’ तुम जिस दिन सच्चे संत बन जाओगे, उस दिन तो तुम्हारे अंदर कोई संकल्प ही नहीं रहेगा, कोई कामना ही नहीं रहेगी; तुम्हारे द्वारा स्वाभाविक परम मंगलमयी चेष्टा ही निरन्तर होती रहेगी। उससे पहले तुम्हें चाहिये कि जो भी फलरुप में तुम्हें प्राप्त हो, उसका आन्तरिक उल्लास से स्वागत करो। प्राणों का उल्लास लेकर मन-ही-मन पुकार उठो-‘प्रभो! तुम्हारी मंगलमयी इच्छा पूर्ण हो।’ सारांश यह है कि तुम छोटी बातों के लिये तो कहना ही क्या है, अपनी, अपने साथियों की मृत्यु की सम्भावना दीखने पर भी व्यावहारिक जगत् में उससे बचने-बचाने केलिये सात्विक उपायों का आश्रय तो ले लो, पर भयभीत मत होओ; अपितु परम उल्लास के साथ मृत्यु का स्वागत करना सीखो-‘मृत्यु के रूप में भगवान् ही आ रहे हैं, तुम्हारा मंगल करने के लिये’-इसे इतने उल्लास से अपने जीवन में मूर्त कर लो मानो मृत्युको तुम निमन्त्रित कर रहे हो, मेरी तरह डूबती हुई नाव में पानी डालने की भाँति।’

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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