प्रेम सत्संग सुधा माला पृ. 15

प्रेम सत्संग सुधा माला

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बढ़िया-बढ़िया चीजों को लीला मान लेना आसान है; परीक्षा तो तब होती है,जब गरमी पड़ रही हो, पानी मिले नहीं और मन भीतर से कहे कि यह भी श्रीकृष्ण की ही एक लीला है। खूब ठंडाई पीने को मिले, मोटर घूमने के लिये हो, हाथ जोड़े सेवा करने वाले खड़े हों, उनमें श्रीकृष्ण की लीला मानना सरल है। इसीलिये आपसे प्रेमवश निवेदन किया है कि कहीं भी जायँ, कुछ भी करें, अपना लक्ष्य न भूलें। हम अमुक काम क्यों करते हैं— यह खूब विचार कर उसे करें।

किसी के यहाँ आप जीमने बैठे हैं। अबउस समय भी आपको यह ध्यान रहेगा कि हम खाते क्यों हैं? श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिये या भोग भोगने के लिये? भोग भोगने के लिये खाना दूसरी तरह का होता है तथा श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिये खाना दूसरी तरह का। आप खायेंगे; वे ही चीजें तथा जितनी खाते हैं, उतनी ही खायेंगे; पर श्रीकृष्ण लक्ष्य होने पर आपका मन उस समय श्रीकृष्ण का ही चिन्तन करता रहेगा या परोसने वाले में भी आपको श्रीकृष्ण-ही-श्रीकृष्ण दिखायी देंगे तथा आपका मन आनन्द से भरता ही रहेगा।

यदि आपका लक्ष्य श्रीकृष्ण हैं तो फिर मन में संसार के चित्र तो बहुत अधिक पहले से ही भरे हुए हैं, अबयहाँ के भवन को और क्यों भरें। यह नया मैल ही तो भरेगा। उसकी जगह यदि श्रीकृष्ण के उन निकुंजों को याद कर सकें, जो एक-से-एक बढ़कर सुन्दर हैं, जिनकी छाया को भी संसार के समस्त बागीचों की सुन्दरता नहीं छू सकती, उन निकुंजों में मन फँसायें तो कितना लाभ हो। स्वयं शान्ति पायें तथा अपने पास रहने वाले को भी शान्ति दें। हाँ, एक बात है। मन है बदमाश। यह रुके नहीं तो एक और उपाय है। जैसे उस महल में गये थे, वहाँ पता नहीं क्या-क्या देखा। परजो-जो चीज देखी, उसी-उसी के आधार पर दिव्य वृन्दावन की कल्पना उसी समय साथ-साथ करते जाते तो जैसे जहर के साथ अमृत भरा जाय वैसे ही इन संस्कारों के साथ ही एक ऐसी दिव्य चीज मस्तिष्क में घुसती चली जाती कि वह बहुत काम देने वाली हो जाती।आपकी बात नहीं, पर प्रायः ऐसा ही होता है कि इन चीजों को देखते समय भगवान् को तो हम भूल जाते हैं और चीज— माया-माया केवलदीखती है— जिसका परिणाम होता है दुःख।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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