प्रेम सत्संग सुधा माला पृ. 130

प्रेम सत्संग सुधा माला

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जब उद्धव ने यह देखा, तब वे दंग रह गये। फिर चेष्टा की कि भीतर निकुंज में प्रवेश करें। पर ललिताजी की आज्ञा से रोक दिये गये। उद्धव ने खीझकर शाप दे दिया कि जाओ मर्त्यलोक में। ललिताजी ने भी कहा कि तब तुम भी अंधे बनकर वहीं चलो। यह प्रेम का विनोद था। पर आखिर जबान तो उनकी सच होकर ही रहती थी। इसीलिये एक अंश से ललिताजी ने अवतार धारण किया तथा उद्धव ने भी एक अंश से सूरदास के रूप में जन्म लिया।

ये ललिताजी अकबर बादशाह के यहाँ एक हिंदू बेगम के पास पलीं। बेगम उन्हें बहुत छिपाकर रखती थीं। पर एक दिन बादशाह ने देख लिया। उसने जीवन भर में ऐसी सुन्दरता देखी ही नहीं थी। बेगम उस लड़की को बहुत प्यार करती थी तथा सचमुच अपनी लड़की के समान ही मानती थी।

एक दिन बेगम ने उस लड़की से कहा कि ‘बेटी! तू एक दिन मेरा श्रृंगार कर दे, क्योंकि तुझे जैसा श्रृंगार करना आता है, वैसा मैंने कभी नहीं देखा।’ उस लड़की ने मामूली श्रृंगार कर दिया। बेगम बादशाह के पास गयी। उस दिन अकबर ने बेगम को ऊपर से नीचे तक देखा तथा उसके रूप को देखकर चकित हो गया। वह बोला—‘बेगम! आज तो मैं तुम्हें देखकर हैरान हूँ; सच बताओ, आज तुमने कोई जादू तो नहीं किया है।’ अन्त में बेगम ने सच बता दिया कि ‘मेरीएक बेटी है, उससे मैंने श्रृंगार के लिये प्रार्थना की। उसने मुझे मामूली ढंग से सजा दिया। यदि मन से सजाती तो पता नहीं क्या होता।’ बादशाह के मन में पाप आ गया। बेगम उसे लड़की मानती थी, पर बादशाह नेएक नहीं सुनी। किंतुमन में पाप आते ही अकबर के सारे शरीर में जलन आरम्भ हो गयी। बड़े-बड़े हकीम उपचार करके हार गये, पर कोई भी लाभ नहीं हुआ। फिर बीरबल ने कहा कि यह दैवी को है, किसी महात्मा की कृपा के बिना यह दूर नहीं होगा। उस समय सूरदास सबसे बड़े महात्मा माने जाते थे। वे बुलाये गये। सूरदास ने कृपापरवश होकर जाना स्वीकार कर लिया। वे आये तथा अकबर को देखकर कहा—‘तुम्हारे पापों के कारण ही यह हुआ है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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