प्रेम सत्संग सुधा माला पृ. 128

प्रेम सत्संग सुधा माला

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95- नन्ददासजी व्रज के एक बड़े प्रेमी महात्मा हो गये हैं। ये तुलसीदासजी के गुरुभाई थे। पीछे राम प्रेमी से कृष्ण प्रेमी बन गये। एक दोहा प्रसिद्ध है, गोस्वामी तुलसीदासजी ने यह लिखकर भेजा-

कहा कमी रघुनाथ में छाड़ी अपनी बान।

श्रीरामचन्द्र में क्या कमी थी कि अपनी बान छोड़ दी अर्थात् राम को छोड़कर कृष्ण को भजने लगे। उसी के नीचे नन्ददासजी ने लिखकर भेजा-(कमी कुछ नहीं, राम-कृष्ण सर्वथा एक हैं; पर)

मन बैरागी ह्वै गयौ सुन बंसी की तान।

कहने का मतलब यह है कि कब भगवत्कृपा प्रकाशित होकर जीवन ऊपर उठ जायगा- यह कोई नहीं कह सकता। अतः कृपा की आशा लगाये रहना चाहिये। चाहे किसी का जीवन कितना ही पतित क्यों न हो, कभी निराश नहीं होना चाहिये। उनकी कृपा होगी तब एक क्षण में सारा नकशा पलट जायगा।

96-महात्माओं की दृष्टि पड़ते ही क्षण भर में जीवन सुधर सकता है। दक्षिण में एक भक्त हुए हैं। उनका नाम धनुर्दास था। एक वेश्या थी- हेमाम्बा नाम था उसका। बड़ी सुन्दर थी। उसके रूप पर वे मुग्ध थे। भगवान् में भक्ति बिलकुल नहीं थी। शरीर खूब हट्टा-कट्टा था। लोग उन्हें पहलवान कहते थे। बिचारे के अन्दर कामवासना नहीं थी, रूप का मोह था। उसे रूप बड़ा प्यारा लगता था। दिन बीतने लगे। रंगजी के मन्दिर में उत्सव प्रतिवर्ष हुआ करता था और वैष्णवाचार्य श्रीरामानुजजी महाराज मन्दिर में आया करते थे। लाखों की भीड़ होती थी। कीर्तन का दल निकलता था। पहलवानजी और वेश्या के मन में भी उत्सव देखने की एक साल इच्छा हुई। वे लोग भी आये। कीर्तन में लोग मस्त थे। भगवान् की सवारी सजायी गयी थी। हजारों आदमी आनन्द में पागल होकर नाच रहे थे। पर पहलवानजी को उस वेश्या के मुख की शोभा देखने से फुरसत नहीं थी। वे वहाँ भी एकटक उस वेश्या हेमाम्बा को ही देख रहे थे। श्रीरामनुजाचार्यजी की दृष्टि पड़ गयी। इतने बड़े महात्मा की दृष्टि पड़ी। भाग्यखुल गया। श्रीरामनुजाचार्यजी बोले-यह कौन है? उनको दया आ गयी थी। लोगों में यह बात प्रसिद्ध थी ही। सबने सारा हाल कह सुनाया। श्रीरामानुजाचार्यजी डेरे पर गये और कहा, उसे बुला लाओ। पहलवानजी आये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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