प्रात समय नँदनंदन स्यामा देखे आवत कुजगली।
नव घन स्याम तरुन दामिनि मिल राजत रूप अनूप अली।।
लटपटि पाग सीस कर मुरली लोचन घूमत भाँति भली।
सिथिलित चीर मरगजी अँगिया काम कामिनी देखि छली।।
चारि जाम निसि जागत बीते उन उमँग्यौ अनुराग बली।
कज्जल अधर नैन बीरी रँग मदन नृपति कौ चमू दली।।
‘सुर' बदन पंकज रस पीके अलक मधुप की पाँति चली।
प्रफुलित प्रीति परस्पर निरखत तरनि उदय ज्यौ कमलकली।। 79 ।।