प्रभु हौं बड़ी बेर कौ ठाढ़ौ।
और पतित तुम जैसे तारे, तिनही मैं लिखि काढ़ौ।
जुग-जुग विरद यहै चलि आयों, टेरि कहत हौं यातै।
मरियत लाज पाँच पतितनि मैं, हौं अब कहौ घटि कातैं।
कै प्रभु हारि मानि कै बैठौ, कै करौ बिरद सही।
सूर पतित जो झूठ कहत है, देखौ खोजि बही।।।137।।