प्रभु मेरे मोसौं पतित उधारौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग गौरी






प्रभु मेरे, मोसौं पतित उधारौ।
कामी, कृपिन कुटिल, अपराधी, अघनि भरयौ बहुभारौ।
तीनौ पन मैं भक्ति न कीन्‍हीं, काजर हूँ तैं कारौ।
अब आयौ हौं सरन तिहारी, ज्‍यौं जानौ त्‍यौं तारौ।
गीध-ब्‍याध-गज-गनिका उधरी, लै लै नाम तिहारौ।
सूरदास प्रभु कृपावंत ह्वै, लै भक्तनि मैं डारौ।।178।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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