प्रभु मेरे, मोसौं पतित उधारौ।
कामी, कृपिन कुटिल, अपराधी, अघनि भरयौ बहुभारौ।
तीनौ पन मैं भक्ति न कीन्हीं, काजर हूँ तैं कारौ।
अब आयौ हौं सरन तिहारी, ज्यौं जानौ त्यौं तारौ।
गीध-ब्याध-गज-गनिका उधरी, लै लै नाम तिहारौ।
सूरदास प्रभु कृपावंत ह्वै, लै भक्तनि मैं डारौ।।178।।