प्रभु तुम अपनो बिरद सँभारौ -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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राग वागेश्री - ताल तीन ताल


प्रभु! तुम अपनो बिरद सँभारौ।
अधम-‌उधारन नाम धरायौ अब मत ताहि बिसारौ॥
मोसों अधिक अधम को जग महँ पापिन महँ सरदारौ।
ढूँढ़-ढूँढ़ जग अघ अति कीन्हें गनत न आवै पारौ॥
मोरे अघ कौं लिखत-लिखावत चित्रगुप्त पचि हारौ।
त‌ऊ न आयौ अंत अघन कौ, छाड़ी कलम बिचारौ॥
अब लौं अधम अनेक उधारे, मो सों पल्लौ डारौ।
राखो लाज नाम अपने की, मत खो‌औ पतियारौ॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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