प्रभु जू हौं तो महा अधर्मी -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

Prev.png
राग सोरठ




प्रभु जू, हौं तो महा अधर्मी।
अपत, उतार, अभागौ, कामी, विषयी, निपट कुकर्मी।
घाती, कुटिल, ढीठ, अतिक्रोधी, कपटी, कुमति, जुलाई।
औगुन की कछु सोच न संका, बड़ौ दुष्‍ट, अन्‍याई।
बटपारो, ठग, चोर उचक्‍का, गाँठि-कटा, लठबाँसी।
चंचल, चपल, चबाइ, चौपटा, लिए मोह की फाँसी।
चुगुल, ज्‍वारि, निर्दय, अपराधी, झूठौ, खोरौ खूटा।
लोभी, लौंद, मुकरबा, झगरू, बड़ौ पढ़ैलौ, लूटा।
लंपट, धूत, पूत दमरी कौ, कौड़ी कौड़ी जोरै।
कृपन, सूम, नहिं खाइ खवावै, खाइ मारि कै ओरै।
लंगर, ढीठ, गुलामी, टूंडक, महा मसखरा, रूखा।
मचमा, अकलै-मूल, पातर, खाउँ खाउँ करै भूखा।
निर्धिन, नीच, कुलज, दुर्बुद्धी, भोंदू, नित कौ रोऊ।
तृष्‍ना हाथ पसारे निसि-दिन, पेट भरे पर सोऊ।
बात बनावन कौं है नीकौ, वचन-रचन समुझावै।
खाद-अखाद न छाँड़ैं अब लौं, सब मैं साधु कहावै।
महा कठोर, सुन्‍न हिरदै को, दोष देन कों नीकों।
बड़ौ कृतघ्‍नी और निकम्‍मा, वेधन राँकौ-फीकौ।
महामत बुधि-बल कौ होनौ, देखि करै अंधेरा।
बमनहिं खाइ, खाइ सो डारै, भाषा कहि कहि टेरा।
मूकू निद निगोड़ा, भोंड़ा, कायर, काम बनावै।
कलहा, कुही, मूष रोगी अरु काहूँ नैकु न भावै।
पर-निंदक, परधन को द्रोहो, पर संतापनि बोरौ।
औगुन और बहुत हैं मो पै कह्यौ सूर मैं थोरौं।।186।।
 

इस पद के अनुवाद के लिए यहाँ क्लिक करें
Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः