प्रभु जू यौं कीन्‍हीं हम खेती -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सोरठ




प्रभु जू, यौं कीन्‍हीं हम खेती !
बंजर भूमि, गाऊँ हर जोते् अरु जेती की तेती।
काम-क्रोध दोउ बैल मिलि, रज-तामस सब कीन्‍हौ।
अति कुबुद्धि मन हाँकनहारे, माया जुआ दीन्‍हौं।
इंद्रिय-मूल-किमान महातृन-अग्रज-बीज बई।
जन्‍म जन्म की विषय-वासना, उपजत लता नई।
पंच-प्रजा अति प्रबल बली मिलि, मन-बिधान जौ कीनौ।
अधिकारी जम लेखा माँगै, तातैं हों आधीनौ।
घर मैं गथ नहिं भजन तिहारौ, जौन दियैं मैं छूटौं
धर्म जमानत मिल्यौ न चाहै, तातैं ठाकुर लूटौ।
अहंकार पटवारी कपटी, झूठी लिखत वही।
लागै धरम, बतावै अधरम, बाकी सबै रही।
सोई करौ जु बसतै रहियै, अपनौ धरियै नाउँ।
अपने नाम की बैरख बाँधौ, सुबस बसौं इहिं गाउँ।
कीजै कृपा-दृष्टि की वरषा, जन की जाति लुनाई।
सूरदास के प्रभु सो करियै, होइ न कान कटाई।।185।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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