प्रभु, तुम दीन के दुख-हरन -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

Prev.png
राग केदारौ'



प्रभु, तुम दीन के दुख-हरन।
स्‍यामसुंदर, मदन-मोहन, बान असरन-सरन।
दूर देखि सुदामा आवत, धाइ परस्‍यौ चरन।
लच्‍छ सों बहु लच्‍छ दौन्‍हौ, दान अवढर-ढरन।
छल कियौ पांडवनि कौरव, कपट-पासा ढरन।
ख्‍वाय विष, गृह लाय दीन्‍हौ, तउ न पाए जरन।
बूड़तहिं ब्रज राखि लीन्‍हौ, नखहिं गिरिवर धरन।
सूर प्रभु कौ सुजस गावत, नाम-नौका तरन।।202।।

इस पद के अनुवाद के लिए यहाँ क्लिक करें
Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः