पुष्टिमार्ग की आधारशिला महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने शुद्धाद्वैत दर्शन के आधार पर रखी थी। इसमें प्रेम प्रमुख भाव है। इसे 'वल्लभ सम्प्रदाय' भी कहा जाता है।
- हिन्दू धर्म में 'वरूथिनी एकादशी' की महिमा बहुत अधिक है। ऐसा इसलिए है कि विक्रम संवत 1535 में इसी एकादशी को पुष्टिमार्ग के संस्थापक महाप्रभु वल्लभाचार्य का जन्म हुआ था।
- संसार में दैहिक, दैविक एवं भौतिक दु:खों से दु:खी प्राणियों के लिए पुष्टिमार्ग वह साधना का पथ है, जिस पर चलकर व्यक्ति कष्टों से मुक्त होकर श्रीकृष्ण की भक्ति के अलौकिक आस्वाद को पाकर धन्य हो जाता है।
- पुष्टिमार्ग शुद्धाद्वैत दर्शन पर आधारित है। इसमें भक्त भगवान के स्वरूप दर्शन के अतिरिक्त अन्य किसी वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं करता। वह आराध्य के प्रति आत्मसमर्पण करता है। इसको 'प्रेमलक्षणा भक्ति' भी कहते हैं।
- 'भागवत पुराण' के अनुसार, "भगवान का अनुग्रह ही पोषण या पुष्टि है।" वल्लभाचार्य ने इसी आधार पर पुष्टिमार्ग की अवधारणा दी। इसका मूल सूत्र उपनिषदों में पाया जाता है।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ प्रेम पर आधारित है पुष्टिमार्ग (English) jagran.com। अभिगमन तिथि: 28 April, 2016।
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