पीतांबर सिर धरे चूनरी बचावत -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

Prev.png




पीतांबर सिर धरे चूनरी बचावत।
घन बरषत राधे गिरिधर सँग सघन कुंज बन धावत।।
ज्यौ ज्यौ बूँद लगति तिरछौही बिज्जु छटा डरपावत।
त्यौं त्यौं श्रीवृषभानु नंदिनिहिं हरषित हृदय लगावत।।
राजत जोट कलिंदी इंदु दोउ भींजत अति छवि पावत।
हँसि मुसुकाइ चितै इकटक ह्वै अधिकौ प्रेम जनावत।।
बिहरत सघन कुंज मैं दोऊ यह समयौ मन भावत।। 112 ।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः