पिय बिनु नागिनि कारी रात -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सोरठ


पिय बिनु नागिनि कारी रात ।
जौ कहु जामिनि उवति जुन्हैया, डसि उलटी ह्वै जात ।।
जंत्र न फुरत मत्र नहिं लागत, प्रीति सिरानी जात ।
‘सूर’ स्याम बिनु बिकल बिरहिनी, मुरि मुरि लहरै खात ।। 3272 ।।

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