पिया तेरे नाम लुभाणी हो -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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पिया तेरे नाम लुभाणी हो ।।टेक।।
नाम लेत तिरता सुणया, जैसे पाहण पाणी, हो ।
सुकि‍रत कोई ना कि‍यो, बहु करम कुमाणी, हो ।
गणिका कीर पढावताँ, बैकुंठ बसाणी, हो ।
अरध नाम कुंजर दलियो, वाको अवध घटानी, हो ।
गरुड़ छाँड़ि हरि धाइया, पसुजूण मिटाणी, हो ।
अजामेल से ऊधरे, जम त्रास नसानी, हो ।
पुत्र हेते पदवी दई, जग सारे जाणी हो ।
नाम महातम गुरु दियो, परतीत पिछाणी, हो ।
मीराँ दासी रावली, अपंणी कर जाणी हो ।।138।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लुभाणी = लुभाई हुई हूँ। तिरना = तरजाना, पार पा जाना। जैसे...पाणी = जिस प्रकार पानी पर पत्थर। सुकिरत = शुभकर्म, पुण्यकार्य। करम कुमाणी = अशुंभ कर्म व पाप किये। गणिका = वेश्या भक्त। कीर पढ़ावताँ = तोता पढ़ाती-पढ़ाती। वसाणी = बस गई। अरध = अर्ध, आधा। कुंजर = हाथी, भक्त गजेन्द्र। अवण = अवधि, आवागमन का काल। पसु जूण = पशुयोनि। अजामेल = अजामिल भक्त। हेते = कारण। दियो = उपदेश किया। परतीत पिछाणी = विश्वास कर लिया।

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