पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
14. मय का सभा निर्माण
वह भगवान शंकर के आराधकों की आराधना भूमि बन गयी और नारायण, ब्रह्माजी, यमराज, स्वयं भगवान भव तथा श्रीकृष्ण की भी वह यज्ञ भूमि है। जब एक सहस्र चर्तुयुग बीत जाते हैं तो ब्रह्माजी के दिन की संध्या काल में ये लोग वहाँ यज्ञ करते हैं। दैत्यराज वृषपर्वा ने यज्ञ किया था तभी वहाँ और उसकी सामग्री तथा यज्ञ मण्डप मय ने ही निर्मित किया था उस समय। वहाँ से युधिष्ठिर की राजसभा निर्माण के उपयुक्त सामग्री मय को ले आनी थी।[1] मय वहाँ से एक अद्भुत मणिमय पात्र ले आये। यह युधिष्ठिर की राजसभा में रखा रहता था। एक रत्न जटित भारी गदा लाकर उन्होंने भीमसेन को दी। उस गदा की तुलना नहीं थी। अर्जुन के लिए देवदत्त नामक शंख मय वहाँ से ले आये तथा सभा-निर्माण के उपयुक्त सामग्री लाये। मय ने जो राजसभा निर्मित की वह त्रिभुवन में अद्वितीय थी। उसमें स्वर्णिम वृक्ष-लताऐं लहराती थीं। उसकी मणि भूमि ऐसी जान पड़ती थी जैसे तरंगायमान जलराशि हो सभा के मध्य जो सरोवर था उसके चारों ओर के वृक्षों की छाया उसमें प्रतिबिम्बित होने से वह उत्तम आस्तरण से आच्छादित भूमि जान पड़ता था। उस सभा-भवन में द्वार पहचानना भी कठिन था; क्योंकि भित्तियाँ द्वारा जान पड़ती थीं पारदर्शी होने के कारण और जहाँ द्वार थे वहाँ उनके पीछे की भित्ति ऐसी दीखती थी कि वहीं भित्ति वहाँ है। किसी भी देव सभा से वह कहीं अधिक भव्य थी। छोटी-छोटी जल पुष्पों से सुशोभित वापियाँ, पुष्पोद्यान, उच्च सघन सुन्दर वृक्षावली और हंस, सारस, कोकिल, मयूरों से मण्डित उद्यान-दानवेन्द्र मय ने उस मणिमय सोपान सुशोभित सभा का बर्हिभाग भी भली प्रकार सजाया था। अच्छे बुद्धिमान् व्यक्ति भी उस सभा में भ्रम में पड़ जाते थे। जल-स्थल तथा द्वार-भित्ति का निर्णय करने में। यह दानवेन्द्र मय की अपनी कला का वैशिष्टय था और उनका दानव स्वभाव इस कौतूहल से संतुष्ट होता था। किसी को कष्ट भले हो, उसकी निर्णय शक्ति कुण्ठित होकर थकित हो जाय, वह भित्ति से टकरा उठे या सरोवर में गिरकर भीग जाय, इसमें आनन्द मनाने जितनी दानवता परम शैव दानवेन्द्र में शेष थी तो इसे दोष कहने का साहस किसी में नहीं था। यह कौतुक वृत्ति दानवेन्द्र की कला का भूषण ही मानी गयी। आठ सहस्र किंकर नामक राक्षस मय ने उस सभा देखभाल और रक्षा के लिए नियुक्त किये। जितने मूल्यवान कलापूर्ण वस्तु हो, उतनी अधिक सुरक्षा, स्वच्छता तथा सम्हाल की उसे अपेक्षा होती है। मय ने उस अद्भुत मणिमय सभा के लिए इतने रक्षक, स्वच्छकर्ता रखे, यह उचित ही था। वह आवश्यक होने पर उसे स्थानान्तरित भी कर सकते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यज्ञ सम्पूर्ण हो जाने पर जो कुछ बचता है, वह रुद्र का भाग होता है। अतः यज्ञ मंडप, वहाँ प्रयुक्त पात्रादि तथा सब सामग्री वहीं छोड़ दी जाती थी। उसे यजमान अथवा दूसरे भी उस समय नहीं ले जाते थे।
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