पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
84. भीष्म-स्तुति
कल्याण-कामी पुरुष के कर्तव्य, सुख-दु:ख का विवेचन, त्याग की महिमा, सन्त के आचरण संसार के मूल तत्वों का प्रसंख्यान, जीव की नित्यता, आचार-विधि, अध्यात्म-ज्ञान, ध्यानयोग, जप का माहात्म्य, परमात्म-तत्व का निरूपण, आत्मदर्शन के साधन का बहुत गम्भीर निरूपण किया भीष्म ने।[1] अन्त में भीष्म ने भगवान नारायण से विश्व की उत्पति का वर्णन करके उन श्रीहरि के वाराह, वामनादि अवतारों का चरित सुनाया। सदाचार का वर्णन किया। दोषों से छूटने का उपाय, ज्ञान, वैराग्य, ब्रह्मचर्य, दम, तप का वर्णन करके काल की महिमा कही। काल का स्वरूप, सृष्टि की उत्पति, प्रलय का वर्णन किया। योग, ध्यान, नाना प्रकार की धारणाएँ, ज्ञान द्वारा मोक्ष, ज्ञान के साधन, कर्म-ज्ञान का अन्तर, बतलाते हुए विस्तार से मोक्ष-पुरुषार्थ के सभी साधनों का निरूपण किया। भीष्म के उपदेश में स्त्रीधर्म, राजधर्म, वर्णाश्रमधर्म, आपद्धर्म तथा विभिन्न परिस्थितियों में पड़े सभी लोगों के धर्मों का यथावत वर्णन दृष्टान्त सहित विस्तार से आ गया। धर्म-पुरुषार्थ का कोई अंग छूटा नहीं। वर्णाश्रम धर्म के निरूपण में सबके अर्थ एवं काम का वर्णन भी आ गया; क्योंकि सनातन धर्म धर्मानुकूल ही अर्थोपार्जन तथा इन्द्रिय-भोग को श्रेयस्कर मानता है। धर्म पुरुषार्थ ही अर्थ– काम का नियामक है। धर्म को त्यागकर अर्थ एवं काम का अर्जन-उपयोग सर्वथा ही पतन का हेतु माना गया है। भीष्म जी ने प्रवृति-प्रधान तथा निवृति-प्रधान दोनों प्रकार के धर्मों का पूरा निरूपण किया। निवृति प्रधान धर्म की श्रेष्ठता स्वीकार की; क्योंकि ब्रह्मज्ञान में सबका अधिकार है और मोक्ष ही मनुष्य का परम प्राप्य-अन्तिम लक्ष्य होना चाहिए। मोक्ष-धर्म के निरूपण में सन्यासी के स्वभाव, आचरण, धर्म का विस्तार से वर्णन किया। ब्राह्मी स्थिति के वर्णन में भीष्म ने वृत्रासुर की कथा सुनाई। उसके विपरीत कम-प्रवृति में लगने से होने वाली गति का वर्णन करते हुए प्रजापति दक्ष के यज्ञ का ध्वंस सुनाया। मोक्ष के विस्तार से निरूपण में अनेक तत्त्वज्ञों के उपदेश-उद्धृत किये। सांख्य, योग, क्षर-अक्षर विवेक, आत्मा-अनात्मा–विवेक, इनका वर्णन हुए बिना तो तत्त्व–ज्ञान का निरूपण ही सम्भव नहीं था। मोक्ष के साधनों का वर्णन करते हुए भगवद्भक्ति का वर्णन किया भीष्म जी ने। भगवान नारायण के स्वरूप, उनके वैकुण्ठ, श्वेत द्वीप आदि धामों का वर्णन करके अन्त में श्रीकृष्ण की महिमा का बहुत विस्तार से वर्णन किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत का पूरा शान्तिपर्व भीष्म का उपदेश है। वह बहुत रोचक तथा अत्यन्त उपयोगी ज्ञान का समुद्र ही है।
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