पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
82. भक्त–भक्तमान
अचानक बोलते-बोलते युधिष्ठिर चुप हो गये। श्रीकृष्ण के समीप पहुँचकर सभी को सदा एक कठिनाई होती है कि इनका सर्वांग दर्शन प्राय: नहीं होता। नेत्र इनके जिस अंग पर पहुँचते हैं, वहीं के होकर रह जाते हैं और तब पता कैसे लगे कि ये सौन्दर्य-सिन्धु कर क्या रहे हैं। युधिष्ठिर आये थे तो एक दृष्टि में देख लिया था कि शय्या पर श्रीकृष्णचन्द्र बैठे हैं; किन्तु नेत्र उसी समय इनके श्रीचरणों में लग गये। वैसे ही हाथ जोड़े धर्मराज समीप आ गये और बोलने-स्तुति करने लगे थे। अब सहसा चौंक गये। ऐसा तो कभी नहीं हुआ था कि युधिष्ठिर के आने पर श्रीकृष्ण शय्या पर चुपचाप बैठे रहें। ये तो युधिष्ठिर के आने पर उठ जाते हैं, अभिवादन करते हैं, आदरपूर्वक आसन देते हैं और बैठाकर तब बैठते हैं। आज क्या बात है? आज बोलते क्यों नहीं। युधिष्ठिर ने नेत्र उठाये और देखकर शान्त खड़े रह गये। अद्भुत छवि है। भगवान पुरुषोत्तम सीधे शय्या पर सिद्धासन लगाये बैठे हैं। क्रोड़ी में विकच कमल के समान कर द्वय पड़े हैं। श्रीविग्रह सीधा है। नेत्र बन्द हैं, किन्तु उनसे बड़े-बड़े बिन्दु गिर रहे हैं। सम्पूर्ण शरीर रोमाञ्चित है और उससे स्वेद-प्रवाह चल पड़ा है। 'ये निखिल ब्रह्माण्ड-नायक ध्यान कर रहे हैं?' युधिष्ठिर आश्चर्य से स्तब्ध देखते रह गये। 'भला इन भुवनेश्वर को किसका ध्यान करना है?' 'पुरुषोत्तम ! सब योगीन्द्र, मुनीनन्द्र आपका ध्यान करते हैं।' श्रीकृष्ण के शरीर में कुछ गति आने पर, उनके नेत्र खोलने पर युधिष्ठिर ने अत्यन्त विनम्रतापूर्वक प्रार्थना की– 'सर्वथा काष्ठ या पाषाण मूर्ति के समान स्थिर, निष्कम्प, पुलक प्रफुल्ल आपका श्रीविग्रह अभी था। आप जगत के आदि कारण, सर्वेश्वरश्वर किसका ध्यान कर रहे थे? मैं आपका शरणागत हूँ। आपको शिर से प्रणाम करके आपके इस ध्यान का रहस्य जानने की प्रार्थना करता हूँ।' श्रीकृष्णचन्द्र ने बहुत शिथिल भाव से दो-चार बार पलकें झपकायीं। इस प्रकार क्रोड़ी से उठाये जैसे इसमें भी उन्हें प्रयत्न करना पड़ रहा है। बहुत शिथिल स्वर में बोले- 'शरशय्या पर पड़े भीष्म मेरा ध्यान कर रहे हैं, अत: मेरा मन भी उनमें ही लग गया है।' अब भीष्म का मन में स्मरण है, उनकी चर्चा प्रारम्भ हो गयी तो श्रीकृष्ण को यह भी स्मरण नहीं रहा कि युधिष्ठिर हाथ जोड़े खड़े हैं। उनको बैठने के लिए भी कहना चाहिए। भक्त को भगवद्गुणगान में यह तन्मयता भले न प्राप्त हो, इन भोले भगवान को तो भक्त का स्मरण भर आना चाहिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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