पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
68. कर्ण मारा गया
श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा- 'राजा युधिष्ठिर कर्ण के साथ तुम्हारा युद्ध देखने आ गये थे; किन्तु अधिक आहत होने से फिर शिविर में लौट गये। अब हम उनके पास चले।' श्रीकृष्ण-अर्जुन शिविर में पहुँचे तो आहत युधिष्ठिर पलंग पर सो रहे थे। दोनों ने उनके चरणों में प्रणाम किया। उठकर युधिष्ठिर ने दोनों को हृदय से लगाया। श्रीकृष्ण ने विस्तार से युद्ध की घटना तथा कर्ण का मारा जाना सुनाकर कहा- ‘सौभाग्य की बात है कि आप पाँचों भाई सकुशल हैं और आपके सब प्रधान शत्रु मारे गये। आपको जिसने आज इतना आहत किया था; वह सूत पुत्र छिन्न मस्तक पड़ा है। उसके कितने बाण लगे है, यह चलकर आप देख लीजिये।’ युधिष्ठिर के नेत्र भर आये। श्रीकृष्ण की दाहिनी भुजा पकड़कर दो क्षण वे मूक बने रहे। फिर बोले- ‘देवर्षि नारद तथा भगवान व्यास ने जो मुझे बतलाया है कि आप साक्षात नारायण हैं। आपने अर्जुन का सारथ्य स्वीकार किया; हमारी विजय तो तभी सुरक्षित हो गयी थी। आप सुरक्षा के लिए सावधान है, अतः अर्जुन का विजयी होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।’ राजा युधिष्ठिर स्वर्ण के सज्जित रथ पर बैठकर श्रीकृष्ण तथा अर्जुन के साथ रणभूमि देखने गये। तब तक सायंकाल हो चुका था। दुर्योधन ने सुगन्धित तेल भरकर कर्ण के शरीर के आस-पास स्वर्ण निर्मित सैकड़ों दीपक रखवाये थे। उनके प्रकाश में ही कर्ण का वाणों से स्थान-स्थान पर विदीर्ण शरीर उन लोगों ने देखा। ‘गोविन्द ! आप सर्वेश्वर ही नहीं; मेरे अपने स्वामी हैं।’ युधिष्ठिर ने कहा- ‘आपकी कृपा से ही यह विजय हुई।’ वहाँ से वे लोग शिविर में लौट आये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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