पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
61. सत्यासत्य
इतना अथक प्रयास करने पर भी जब आचार्य द्रोण के समीप दुर्योधन उपालम्भ देने पहुँचा तो उसकी कठोर बातें सुनकर आचार्य चिढ़ गये। उन्होंने खरी-खरी सुना दी- 'तुम पापी हो, इसलिए तुम्हें सर्वत्र पाप ही दीखता है। पाण्डव पुण्यात्मा हैं, धर्मपरायण हैं, शीलवान हैं, इसलिए कोई सत्पुरुष उनसे स्नेह न करे, यह सम्भव नहीं है। यह सत्य है कि मेरा उन पर स्नेह है, किन्तु युद्ध में स्नेह नहीं, कर्तव्य प्रधान होता है। युद्ध में भी पाण्डव मेरा सम्मान करते हैं और तुम्हारे लिए मैं प्राण देने को भी प्रस्तुत हूँ तो भी तुम सन्देह करते हो, यह तुम्हारे पापिष्ठ अन्त:करण का द्योतक हैं। ‘तुमने पासों के साथ छलपूर्ण क्रीड़ा करायी तो कुछ सोचा था ? भरी सभा में पाञ्चाल राजकुमारी का अपमान किया, उसे दुर्वचन कहे तो उन पापों का परिणाम तुम नहीं भोगोगे, कोई दूसरा भोगेगा ? हम सब भी तुम्हारा समर्थन करके मारे जायँगे, यह जानता हूँ। ‘दुर्योधन ! तुमने बार-बार कहा है कि तुम, कर्ण और शकुनि केवल तीन ही पाण्डवों को पराजित कर सकते हो। तुम्हें ऐसा करने से किसने रोका है तुम तीनों मिलकर पाण्डवों से युद्ध करो। मैंने प्रतिज्ञा की है कि परपक्ष को पराजित करके ही कवच उतारूँगा अन्यथा समरभूमि में सदा को सो जाऊँगा। अब मुझसे और कोई आशा मत करो। मेरे पास फिर उपालम्भ देने मत आना। कर्ण, शकुनि तथा और जो भी तुम्हें समर्थ सूझें, उन्हें लेकर अपना पराक्रम प्रकट करो।' दुर्योधन ने देख लिया कि आचार्य बहुत क्रुद्ध हैं। उनसे कुछ कहने से बात बिगड़ेगी ही। वह वहाँ से चला गया। सेना बहुत थोड़ी रह गयी थी। व्यूह बनाया नहीं जा सकता था। यद्यपि अश्वत्थामा ने रात्रि युद्ध में पाण्डवों की दो अक्षौहिणी सेना मार दी थी किन्तु अब भी उनके पास कौरवों से लगभग चार गुना सैन्यबल अधिक था। अत: कर्ण, शकुनि आदि को लेकर पृथक मोर्चा खोलना दुर्योधन को उचित लगा। चन्द्रोदय होने पर पुन: युद्ध चल पड़ा पृथक मोर्चा खोलने में कौरव ही कठिनार्इ में पड़े। द्रोणाचार्य के सम्मुख धृष्टद्युम्न डटा था पाञ्चाल वीरों तथा सोमकों को लेकर। स्वयं युधिष्ठिर, अर्जुन और भीमसेन कर्णादि से युद्ध करने पहुँच गये और चाहे जब द्रोण के समीप पहुँचने, अपने पक्ष की सहायता करने को स्वतन्त्र हो गये। दुर्योधन के दोनों मोर्चे दूर-दूर हो गये। उनमें परस्पर सम्पर्क बनाये रखना संख्या बल क्रम होने से सम्भव नहीं रह गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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