पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
59. जयद्रथ-वध
सात्यकि को अपने यादव महारथी कृतवर्मा से ही संग्राम करना पड़ा पहिले, किन्तु कृतवर्मा द्वारिका की सेना के उन प्रधान योधा से शीघ्र पराजित होकर हट गया। त्रिगर्तों की गजसेना और जलसन्ध सात्यकि की शराग्नि में स्वाहा हो गये। कृतवर्मा पुन: लौटा राजा दुर्योधन को आया देख, किन्तु दोनों को प्राण बचाकर भागना पड़ा। दु:शासन म्लेच्छों की पाषाणवर्षी सेना लेकर आया था पर जब सात्यकि ने उस सेना को समाप्त कर दिया, आहत दु:शासन भाग खड़ा हुआ। सात्यकि को भेजे बहुत विलम्ब हुआ तो चिन्तित धर्मराज ने भीमसेन को व्यूह में जाने की आज्ञा दी। भीमसेन तो अर्जुन नहीं थे कि आचार्यद्रोण का सम्मान करके उन्हें छोड़कर आगे बढ़ते। वे रथ से कूदकर आचार्य का रथ हाथ से उठाकर दूर फेंक देते थे। एक के पश्चात दूसरा इस प्रकार द्रोण के आठ रथ फेंककर भीमसेन ने ध्वस्त कर दिये और मुख्य द्वार से व्यूह में प्रवेश किया। व्यूह में पहुँचते ही धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों को मार दिया। इससे कौरव सेना भीमसेन के आगे से भाग खड़ी हुई। भीमसेन आगे बढ़ते हुए सूची व्यूह के समीप तक पहुँच गये और अर्जुन को देखकर अपने सिंहनाद से उन्होंने युधिष्ठिर को सुचना दे दी। धर्मराज की चिन्ता इससे घट गयी। भीमसेन को रोकने कर्ण को आगे आना पड़ा। कर्ण बार-बार पराजित होकर भागता था किन्तु फिर लौट आता था। अन्त में भीमसेन का रथ नष्ट करके वह उन्हें मुर्च्छित कर सका किन्तु सावधान होने पर वे अर्जुन के समीप पहुँच गये और उनके ही रथ पर बैठ गये। कर्ण के साथ युद्ध करते हुए भीमसेन ने दुर्योधन के अनेक भाइयों को यमपुर भेज दिया था। सात्यकि भी अद्भुत पराक्रम करते बढ़ते ही आ रहे थे। उनके आगमन की सूचना श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दी तो अर्जुन राजा युधिष्ठिर के सम्बन्ध में चिन्तित हो उठे। लेकिन अब चिन्ता करने से कोई लाभ नहीं था। सात्यकि को रोका सूची व्यूह से आगे बढ़कर राजा भूरिश्रवा ने। उन्होंने सात्यकि का रथ नष्ट कर दिया। उनको शस्त्रहीन करके पृथ्वी पर गिरा लिया और शिरच्छेद के लिए खङग उठाया। इसी समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सावधान किया। अर्जुन ने बाण मारकर भूरिश्रवा की वह शस्त्र उठाने वाली भुजा काट दी। भूरिश्रवा खिन्न होकर आमरण अनशन का व्रत लेकर बैठ गया किन्तु सात्यकि ने क्रोधवश उसका मस्तक काट दिया। इसी समय श्रीकृष्ण के मुख से लगा उनका पाञ्चन्य शंख ऋषभ स्वर में गूँजने लगा। दारुक अपने स्वामी का शंखनाद का संकेत समझ गया। वह उनका गरुड़ध्वज रथ लिये प्रतिज्ञा ही कर रहा था। उसे व्यूह में आने में कोई बाधा नहीं पड़ी क्योंकि युद्ध के नियमानुसार रथ में केवल सारथि हो तो रथ रोका नहीं जाता था। सात्यकि को श्रीकृष्ण के दिव्यास्त्रों से सज्जित रथ मिल गया। थोड़ी देर में ही दारुक का भाई दूसरा रथ ले आया। सात्यकि उस दूसरे रथ पर चले गये। दारुक को श्रीकृष्ण ने व्यूह से बाहर भेज दिया। अब सात्यकि और भीमसेन उस रथ पर बैठकर कौरव सेना को रोकने के लिए पर्याप्त थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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