पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
55. अर्जुन की प्रतिज्ञा
श्रीकृष्ण ने सखा को समझाया- 'युद्ध में पीठ न दिखाने वाले श्लाघय शूरों को इसी पथ से जाना पड़ता है। शस्त्रों ने श्रेष्ठ क्षत्रिय की यही गति कही है। धर्मयुद्ध में शत्रु के हाथ से मृत्यु उत्तमवीर को सदा अभीष्ट रहती है। अभिमन्यु ने अमित पराक्रम करके शत्रुओं का संहार किया है और तब मारा गया है। उसके लिए शोक मत करो। तुम्हें तो भाइयों तथा दूसरे शोकार्त लोगों को आश्वासन देना चाहिए।' श्रीकृष्ण के समझाने पर अर्जुन ने युधिष्ठिर से पूरा वृत्त विस्तार से सुनाने को कहा। बहुत व्यथापूर्वक धर्मराज ने बतलाया कि विवश होकर उन्होंने अभिमन्यु को व्यूह में प्रवेश की आज्ञा दी। वे स्वयं सब महारथियों के साथ अभिमन्यु की रक्षा करने साथ जाना चाहते थे किन्तु जयद्रथ ने सबको द्वारपर रोक दिया। सब सुनकर अर्जुन पहिले तो मूर्च्छित हो गये फिर सचेत होने पर क्रोध में भरकर बोले- 'मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि जयद्रथ यदि कल युद्ध त्यागकर कुरुक्षेत्र से ही घर नहीं भाग गया अथवा भगवान श्रीकृष्ण या महाराज युधिष्ठिर की शरण में नहीं आ गया तो मैं कल सूर्यास्त तक उसे अवश्य मार दूँगा। उसे मैं कल न मार सका तो स्वयं प्रज्वलित अग्नि में प्रवेश करके देह त्याग कर दूँगा। कल जयद्रथ चाहे स्वर्ग में जा छिपे या पाताल में, उसके रक्षक बनकर सब दैत्य-दानव जा जायँ या सब देवता, कल उस अभिमन्यु के शत्रु को मैं अवश्य मार दूँगा। पार्थ की इस प्रतिज्ञा का समाचार कौरव शिविर में भी पहुँच गया। जयद्रथ भी और शोक से व्याकुल होकर भाग जाना चाहता था किन्तु दुर्योधन उसे लेकर द्रोणाचार्य के समीप गया। द्रोणाचार्य ने जयद्रथ को रक्षा करने का वचन दिया। दुर्योधन का कहना था- 'कल शाम तक जयद्रथ को बचा लिया जाय तो अर्जुन अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार जल मरेगा। अर्जुन के न रहने पर शेष पाण्डवों को जीत लेना तो बहुत सरल है।' यहाँ पाण्डव शिविर में श्रीकृष्णचन्द्र ने अर्जुन से कहा- 'धनंजय ! तुमने अपने भाइयों तथा मुझसे भी पूछे बिना जयद्रथ के वध की प्रतिज्ञा कर ली, यह उचित नहीं किया। यह दुस्साहस है। इससे तुम्हारा उपहास होगा। अपने गुप्तचरों ने जो कौरव पक्ष का समाचार दिया है, वह चिन्ताजनक है।' श्रीकृष्ण ने वह समाचार सुनाया कि सव्यसाची की प्रतिज्ञा का समाचार पाकर जयद्रथ कितना डर गया था। उसे लेकर दुर्योधन स्वयं द्रोणाचार्य के समीप गया। जयद्रथ की रक्षा का पूरा प्रबन्ध आचार्य ने कर लिया है। कल के युद्ध में कर्ण, भूरिश्रवा, अश्वत्थामा, वृषसेन, कृपाचार्य और शल्य ये 6 महारथी आगे रहेंगे। द्रोणाचार्य ने ऐसा व्यूह बनाया है जिसका अगला भाग शकटाकार है और पिछला भाग कमल के समान है। कमल व्यूह की मध्य कर्णिका पर सूची व्यूह में छिद्रस्थान पर जयद्रथ छिपा रहेगा।
अर्जुन अपनी इस आस्था के बल पर निश्चित थे और कौन ऐसा साहस कर सकता है कि इस आस्था को अल्पशक्ति कहे। श्रीकृष्ण पर आस्था-इसके सम्मुख टिकने वाली शक्ति तो हो नहीं सकती। इस आस्था का पराभव तो प्रलय में भी सम्भव नहीं। पार्थ का अजेय बल यह आस्था और जो भी अर्जुन के समान श्रीकृष्ण पर आस्था करके निश्चिन्त हो सके, वह अर्जुन के समान सदा अदम्य एवं अजेय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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