पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
47. गीतोपदेश
शरीर से बाहर काम-क्रोध का वेग प्रकट हो इससे पूर्व ही जो उसे सह लेता है वही युक्त और सुखी है। जो अपने भीतर ही सुखी है, आत्माराम है, आत्मप्रकाश है वह ब्रह्मभूत, बह्मनिर्वाण को प्राप्त करता है। यह ब्रह्मनिर्वाण निष्कल्मष, द्विधा-संशयहीन, संयतात्मा, सर्वभूत हित में रत पुरुष प्राप्त करते हैं। काम-क्रोध रहित, संयतचित्त, तत्त्वज्ञपुरुष को तो सर्वत्र सदा ब्रह्मनिर्वाण प्राप्त है। विषयों को बाहर ही छोड़कर, नेत्र को भ्रूमध्य में स्थिर करके, प्राणापान को समान करके जो मोक्षपरायण साधक इच्छा, राग, द्वेष, भय से छूट गया है वह सदा मुक्त ही है। जो समस्त यज्ञ क्रिया मात्र तथा तप श्रम मात्र का भोक्ता, सर्वलोक महेश्वर मुझे सब प्राणियों का सुहृद समझ लेता है, उसे शान्ति मिल जाती है। केवल अग्नि अथवा क्रिया के त्याग से कोई सन्यासी नहीं होता। कर्म फल का आश्रय लिये बिना जो कर्तव्य का पालन करता है, वही सन्यासी तथा योगी है क्योंकि योग और सन्यास दो तथ्य नहीं है। संकल्प-कामना का सन्यास किये बिना कोई योगी नहीं होता। यह कामना का त्याग करके कर्म करना साधक को सफलता देने का हेतु होता है और सिद्ध पुरुष को शान्ति देता है। जब पुरुष ऐन्द्रियक भोगों में और कर्म में भी आसक्त नहीं होता, सब संकल्पों को छोड़ देता है तब उसे योगारूढ़ कहते हैं। अत: अपने आपसे ही अपना उद्धार करें। अपने को अध:पतित या निराश न करें। यह अन्त:करण ही व्यक्ति का शत्रु भी है और मित्र भी। जिसने इसे वश में किया उसका मित्र है और जो इसके वश में हो गया उसके लिए शत्रु के समान व्यवहार करता है। अन्त:करण वश में है और शान्त है तो परमात्मा में ही सम्यक स्थिति है। अतएव सर्दी-गर्मी, सुख-दु:ख, मान-अपमान में समान रहे। ज्ञान-विज्ञान से तृप्त मानस सब द्वन्द्वों से तटस्थ, जितेन्द्रिय पुरुष, जिसके लिए लोहा, सोना, पत्थर समान है, युक्त कहा जाता है। सुहृद, मित्र, उदासीन, शत्रु आदि सबके प्रति जिसकी बुद्धि समान है वह विशिष्ट पुरुष है जो साधु और पापी दोनों के प्रति समबुद्धि रखता है। इस अवस्था की प्राप्ति के लिए साधक को पवित्र देश में कैसा आसन बनाकर कैसे बैठना तथा अभ्यास करना चाहिए, यह उपदेश करते हुए भगवान ने सावधान किया कि बहुत भोजन करने वाले या सर्वथा उपवास करने वाले साधक को सफलता नहीं मिलती। शरीर के लिए आवश्यक सात्त्विक आहार, व्यवहार, जागरण और निद्रा के त्याग का दुराग्रह नहीं करना चाहिए, इनका उपयुक्त सेवन करना चाहिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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