पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
41. माता कुन्ती का सन्देश
देवी कुन्ती ने यह स्पष्ट आदेश देकर विदुला का आख्यान सुना दिया, युधिष्ठिर को युद्धोद्यत करने के लिए। फिर कहा - 'जनार्दन ! अर्जुन से कहना तेरे जन्म के समय आकाशवाणी हुई थी कि 'यह शिशु इन्द्र के समान होगा। यह भीम के साथ रहकर युद्ध में सभी शत्रुओं को जीत लेगा। यह पूरी पृथ्वी को अपने वश में करेगा। इसका सुयश स्वर्ग तक व्याप्त होगा। श्रीकृष्ण की सहायता से संग्राम में सब कौरवों का संहार करके राज्य प्राप्त करेगा।' यदि धर्म सत्य है तो ऐसा ही होगा। अब तुम देववाणी को सत्य करने के लिए उद्यत हो जाओ।' भीमसेन के लिये उस वीर माता ने सन्देश दिया–‘क्षत्राणी जिस काम के लिये पुत्र उत्पन्न करती है उसका अवसर आ गया है। अब उठ और शत्रुओं का संहार करके अपने पौरुष सार्थक कर।’ उस वीर माता ने अपने पुत्र वधू द्रौपदी की प्रशंसा की। कहलाया–‘पुत्री तू उत्तम कुल में उत्पन्न हुई है। तूने जो धैर्य ,पतिपरायणता दिखलायी है, वह तेरे ही योग्य है।’ नकुल-सहदेव दोनों के लिये संक्षिप्त संदेश - ‘तुम दोनों प्राणों की बाजी लगाकर पराक्रम से प्राप्त भोगों को ही भोगने की इच्छा करो।’ अन्त में उन पुण्यश्लोका पृथा ने कहा - ‘कृष्ण ! मुझे राज्य जाने, द्यूत में हारने तथा पुत्रों के वनवास का दुःख नहीं है। मेरी पुत्र वधू ने रोते हुये कौरव-सभा में जो दुर्योधन के दुर्वचन सुने थे उसका मुझे बहुत दुःख है। भीम और अर्जुन को उसका स्मरण कराके कहना कि उनके लिये वह बहुत बडे अपमान की बात है। ‘मेरे पुत्रों से मेरी ओर से कुशल पूछना, और मेरी कुशल सुना देना। अब तुम जाओ। तुम्हारा मार्ग निर्विघ्न हो। तुम ही मेरे पुत्रों के एकमात्र आश्रय हो। उनकी रक्षा करते रहना।’ श्रीकृष्ण ने बुआ को प्रणाम करके उनकी प्रदक्षिणा की और वहाँ से बाहर आये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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