पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
29. दुर्वासा से परित्राण
दुर्वासा जी ने कह दिया – ‘मैं ऐसा ही करूँगा।’ वे महर्षि चले गये तो कर्ण ने प्रसन्न होकर दुर्योधन से हाथ मिलाया और बोला – ‘बड़े सौभाग्य की बात है कि आपका अभीष्ट पूरा हुआ। आपके शत्रु अब दु:ख के महासागर में मग्न हो गये। अब दुर्वासा का क्रोध उन्हें ले डूबेगा।’ कर्ण भूल ही गया कि पाण्डवों के जो परमाश्रय हैं उनकी छाया से भी विपत्ति के अधिदेवता काँपते हैं। श्रीकृष्ण के चरणाश्रितों का अमंगल करने में समर्थ शक्ति न कभी उत्पन्न हुई, न हो सकती। पाण्डव ब्राह्मणों को भोजन कराके स्वयं भोजन कर चुके थे। द्रुपदराज कन्या ने सबसे अन्त में सदा की भाँति भोजन किया और फिर सूर्य नारायण से प्राप्त पात्र को माँज-धोकर धर दिया। वे विश्राम कर रही थीं। इसी समय महर्षि दुर्वासा वहाँ दस हजार शिष्यों के साथ आये। धर्मराज युधिष्ठिर ने भाइयों के साथ आगे जाकर उन्हें प्रणिपात किया। लाकर आसन पर बैठाया और विधि पूर्वक उनका पूजन किया। दुर्वासाजी का स्वभाव ही है कि वे दूसरों की सुविधा-असुविधा नहीं देखते। उन्हें अपनी धुन रहती है और दूसरों को अविलम्ब उनकी आज्ञा स्वीकार करनी चाहिए। उन्होंने कहा – ‘राजन ! हम सब भूखे हैं। अब मध्यान्ह स्नान संध्या करने समीप के सरोवर पर जा रहे हैं। तब तक आप हम सबके लिए भोजन की व्यवस्था कर दें।’ ‘जो आज्ञा। ‘युधिष्ठिर और क्या कहते। महर्षि शिष्यों के साथ सरोवर पर स्नान करने चले गये। युधिष्ठिर ने द्रौपदी को सम्वाद दे दिया और निश्चिन्त हो गये। द्रौपदी ने सुना और सिर पकड़ लिया। अब क्या हो ? सूर्य के द्वारा मिले पात्र में दिन में एक ही बार रन्धन किया जा सकता था और द्रौपदी के भोजन के पश्चात वह रिक्त हो जाता था। उससे अब कुछ पाया नहीं जा सकता। महर्षि दुर्वासा जैसे प्रसिद्ध क्रोधी से कुछ कहा जा नहीं सकात। यह तो सर्वनाश सम्मुख उपस्थित हो गया। द्रौपदी ने श्रीकृष्ण को पुकारना प्रारम्भ किया – ‘अशरण शरण ! भक्तवत्सल ! आर्ति विनाशन वासुदेव ! आप ही इस विपत्त्िा से रक्षा करो। प्रसन्नपाल गोपाल ! पधारो और अपने पाण्डवों को इन महर्षि के रोष से बचा लो। देव देव ! अपनी इस साधनहीना दीना सखी की इस असाधारण आपत्ति में सहायता करो।’ अचानक गरुड़ध्वज रथ आया और उससे श्रीकृष्ण कूदे। पाण्डव उठे किन्तु इस बार श्रीद्वारिकाधीश ने किसी की ओर देखा ही नहीं। वे शीघ्रता से पांचाली के पास गये और बोले – ‘कृष्णे। मैं दूर से आ रहा हूँ। बहुत थका हूँ। बहत भूख लगी है। शीघ्र कुछ खिलाओ।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज