पारथ के सारथि हरि आप भए हैं -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग रामकली


            
पारथ के सारथि हरि आप भए हैं।
भक्त-बछल नाम निगम गाइ गए हैं।
बाएँ कर बाजि-‍बाग दाहिन हैं बैठे।
हाँकत हरि हाँक देत गरजत ज्‍यौ ऐंठे।
छाता लौं छाँह किए सोभित हरि छाती।
लागन नहिं देत कहूँ समर-आँच ताती।
करन-मेघ वान-बुँद भादौं- झरि लायौ।
जित जित मन अर्जुन कौ तितहिं रथ चलायौ।
कौरौ-दल नासि नासि कीन्‍हौं जन-भायौ।
सरन गए राखि लेत सूर सुजस गायौ।।23।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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